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चेन्नई के बाद तेलंगाना पर भी छाया जल संकट ,नीति आयोग का दावा हालत होंगे और भयावह


Lucknow:

चेन्नई के बाद अब हैदराबाद पर भी जल संकट गहरा गया हैं। मॉनसून का सीज़न होने के बावजूद राज्य में बारिश ने दस्तक तक नहीं दी है। हालात इतने खराब हो गये है, कि वहां पर सिर्फ़ 48 दिनों तक का ही पीने का पानी बचा है। मीडिया रिपोर्ट के मुताबकि हैदराबाद पर गहराए जल संकट का सबसे बड़ा कारण वहां के जलाशयों का वॉटर लेवल लगातार गिरना हैं। इसका सबसे बड़ा कारण इसके जल ग्रहण क्षेत्रों में वर्षा न होना है। तेलंगाना जल विभाग ने आशंका जताई है की अगर राज्य में जल्दी बारिश ना हुई , तो सितंबर के महीने की शुरुआत से ही आसपास के इलाकों में रहने वाले लोगों को भारी जल संकट से जूझना पड़ सकता है। गहरे जल संकट से जूझ रहे चेन्नई को तब राहत मिली जब रेलगाड़ी से वहां 50 हजार लीटर की 50 वैगन से पानी पहुंचाया गया। चेन्नई में पिछले 4 महीने से जल संकट चल रहा है और वहां पर प्रतिदिन 200 मिलियन लीटर जल की कमी है तथा शहर के जलाशय सूख गए हैं।

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हैदराबाद मेँ मौजूद मुख्य जलाशय नागार्जुनसागर, श्रीपदा येलमपल्ली और हिमायतसागर जैसे जलाशयों के जल ग्रहण क्षेत्रों बारिश की एक बूंद भी नहीं गिरी है,इसके चलते यहां का पानी तेज़ी से घट रहा है। तेलंगाना जल विभाग के अनुसार हैदराबाद और सिंकदराबाद सिटी में लगभग 2 करोड़ लोग रहते हैं। जिन्हे इस जल संकट से जूझना पड़ेगा। चेन्नई और हैदराबाद में जल संकट को देखते हुए कर्नाटक सरकार ने बेंगलुरु में अपार्टमेंट के निर्माण में पांच साल तक के लिए बैन पर विचार कर रही है। कर्नाटक राज्य के उप मुख्यमंत्री जी,परमेश्वर ने मीडिया से बात करते हुए बताया की , ‘हम फैसला लेने से पहले बिल्डरों और डिवेलपरों से बात करेंगे।’ उन्होंने बताया, ‘हम निर्माण के अप्रूवल पर 5 साल तक के बैन का विचार कर रहे हैं क्योंकि शहर में बड़ी संख्या में अपार्टमेंट बना चुके हैं और बिना पर्याप्त पानी को सुनिश्चित किए उन्हें लोगों को बेच भी दिया गया है।’ परमेश्वर बेंगलुरु विकास के मंत्री भी हैं, उन्होंने कहा कि इसी ट्रेंड का नतीजा है कि अधिकतर अपार्टमेंट मालिक पीने के पानी के लिए वॉटर टैंकर पर निर्भर हो गए हैं।

नीति आयोग की रिपोर्ट-

नीति आयोग की आई रिपोर्ट में भी भारतको आने वाले समय में गंभीर जल संकट से जूझना पड़ सकता है। रिपोर्ट के अनुसार सहित देश के दिल्ली, बेंगलूर, हैदराबाद सहित देश के 21 बड़े शहरों में भूमिगत जल सूख जाएगा जिससे लगभग 60 करोड़ लोग प्रभावित होंगे और वर्ष 2030 तक 40 प्रतिशत लोगों को पेयजल नसीब नहीं होगा। आयोग की रिपोर्ट के मुताबिक 2030 तक पानी खत्म होने की कगार पर आ जाएगा। रिपोर्ट के अनुसार 2020 से ही पानी की परेशानी शुरू हो जाएगी। यानी कुछ समय बाद ही करीब 10 करोड़ लोग पानी के कारण परेशानी उठाएंगे।

2002 में भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपाई ने जल संकट की परेशानी से निपटने के लिए भारत की महत्वपूर्ण नदियों को जोड़ने संबंधी परियोजना का खाका तैयार किया था। जिसमे हिमालयी हिस्से के तहत गंगा, ब्रह्मपुत्र और इनकी सहायक नदियों के पानी को इकट्ठा करने की योजना बनाई गई। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने पहले कार्यकाल में गंगा समेत देश की 60 नदियों को जोड़ने की योजना को मंजूरी दी थी। मोदी सरकार की इस योजना पर ज्यादा काम हो नहीं पाया। प्रधानमंत्री मोदी भी जल संकट पर सदन में लोगो को पानी को संरक्षित ककरने के लिए बोल चुके हैं। जिस तरह से देश के अलग-अलग राज्यों में जल संकट गहराता जा रहा है, उससे हमें सबक लेते हुए तत्काल जल संरक्षण करने में जुट जाना चाहिए. क्योंकि इसी में हम सबकी भलाई है।

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